आत्महत्या एक डरावनी प्रेम कहानी # लेखनी धारावाहिक प्रतियोगिता -09-Sep-2022
भाग -10
संध्या की मुँह दिखाई के लिए जो हार शीला जी ने खरीदा था उसे दीपा की जलन और शक्ति ने राख में परिवर्तित कर दिया, जिसका सबसे बड़ा घाटा गुड़िया जो कि साधना की छोटी ननद है उसी को ही हुआ। उसके मन में जो लालच पनप गया था, उसी का नतीजा वो भुगत रही थी अपनी आँखों में उस राख की जलन से।
अब आगे...
शीला भवन में साधना के गृह प्रवेश के बाद से ही रोज कुछ ना कुछ अजीब और सबको भयग्रस्त करने वाली घटनाएं परेशान कर रही थीं।
मरी हुई मछली का भयानक बड़ी मछली में बदलना , सोने के हार का राख में बदलना। कभी किसी के खाने की प्लेट में ढ़ेर सारे बाल तो कभी कॉकरोच और मकड़ी।
कभी किसी का नहाने का पानी खौलने लगता तो कभी बर्फ जैसा ठंडा हो जाता।
सभी को लगता यह सब साधना ही कर रही है।
जबकि दीपा सिद्धार्थ के परिवार वालों से बदला ले रही थी।वह सबको ही दोषी मानती थी ,जिनके कारण उसका सिद्धार्थ उससे दूर हुआ।
कोई यह नहीं जानता था कि साधना इसकी जिम्मेदार नहीं हैं यह सब तो सिद्धार्थ की प्रेमिका जो आत्महत्या के बाद भटक रही है और एक बुरी आत्मा में तब्दील हो गई है और जो साधना और सिद्धार्थ के साथ उस जंगल में जहाँ उसकी आत्मा कई सालों से उसका ही इंतजार कर रही है।
जब सिद्धार्थ और साधना की शादी के बाद विदाई की रात उनकी गाड़ी उस जंगल से गुजरी थी वहीं वो सिद्धार्थ का इंतजार कर रही थी। तबसे उनके साथ ही है। पहले ड्राइवर को मारा फिर उसी का वेष धर वो सिद्धार्थ की गाड़ी में आ गई उसके घर।
उसे जब पता चला सिद्धार्थ ने साधना से शादी कर ली है, वो बदले की आग में जल उठी।
वो यह जानती थी कि साल 2000 , 15 नवंबर को बिहार का विभाजन हुआ और झारखंड राज्य की स्थापना हुई। राँची शहर जिसमें उसका सिद्धार्थ रहता है वो अब झारखंड राज्य की राजधानी बन गया है।
सिद्धार्थ ने उसे अपना पता भी नहीं दिया था जब आखिरी बार वो मिले थे और उससे कहा था,," हमारी दोस्ती यहीं तक थी, भूल जाना मुझे "
जब सिद्धार्थ ने कहा तो कितना टूट गई थी वो।
बहुत समझाया दीपा ने उसे। कितना गिड़गिड़ाई जो वो..
"सिद्धार्थ तुम अपने परिवार की जिम्मेदारी पूरी करने के लिए मुझे इस तरह नहीं छोड़ कर जा सकते। हम दोनों मिलकर नौकरी करेंगे, पैसों की कमी कभी नहीं होगी। तुम मुझसे शादी कर लो। मैं तुम्हारे बिना मर जाऊंगी। मुझे भी अपने साथ ले चलो।अपनी सारी बुरी आदतें छोड़ दूंगी..
प्लीज़.. प्लीज़.. प्लीज़..
ले चलो ना मुझे भी अपने साथ...
पक्का मैं अब कभी सिगरेट शराब किसी नशे की चीज को हाथ नहीं लगाउंगी...
पर तुम्हारे प्यार का नशा जो मुझ पर चढ़ा है उससे दूर नहीं रह सकती। ले चलो ना मुझे भी.."
सिद्धार्थ के पिता की हार्ट अटैक से मौत के छह महीने बाद यह खबर उस तक पहुंची जब वो ग्रेजुएशन करने के बाद आइ ए एस की परीक्षा की तैयारी कर रहा था। वो अपने पिता से बहुत ज्यादा अटैच था। उन दिनों फोन की इतनी सुविधा नहीं थी।महीने में एक दो बार ही एस. टी. डी. बूथ से वो घर पर बात करता।
वो परिक्षाओं की तैयारी में लीन था, पैसे भी छह महीने से नहीं भेज रहे थे पिता पर उसे लगा शायद किसी मजबूरी या पैसों की तंगी के कारण ही बाबूजी उसे पैसे नहीं भेज रहे। वैसे भी उसने बी. ए.की परीक्षा देने के बाद कहा था अपने पिता से कि... अब आगे की पढ़ाई का खर्चा खुद निकाल लेगा।
उसने कोचिंग सेंटर में पढ़ाना शुरू कर दिया जिससे दिल्ली में रहने और अपनी पढ़ाई का खर्च निकाल सके ।
दीपा से भी धीरे धीरे यह कह कर दूरी बढ़ा रहा था कि...
" मुझे अभी खूब मेहनत करनी है बस छह महीने बाद ही प्रिलिमिनरी परीक्षा है उसके बाद तुमसे मिलूंगा।"
,, पर यह क्या हुआ परीक्षा से ठीक एक दिन पहले ही उसे अपने भाई का टेलीग्राम मिला जिसमें लिखा था तुरंत घर आ जाओ।बाबुजी नहीं रहे।
जब फोन किया तो पता चला छह महीने पहले ही देहांत हो गया है।उनकी नौकरी परिवार के किसी सदस्य को मिल जाएगी। बस घर में तुम ही हो जो बाबूजी की नौकरी हमारे हाथों से जाने से रोक सकते हो।छोटा भाई अभी बहुत छोटा है और तुम्हारी बी ए भी हो गई है। जल्द आ जा बेटा,घर संभालना मुश्किल हो रहा है अकेले गोविंद की कमाई से। जब माँ ने रो कर यह बताया तो अंदर तक टूट गया था वो और तक मेरे पास ही आया था।
छह महीनों बाद हम मिले थे हमेशा के लिए बिछड़ने के लिए। मैं उसकी पढ़ाई में बांधा ना बनूं बस यही सोच कर उससे नहीं मिलती थी।पर जब वो हमेशा के लिए मुझे छोड़ने की बात कर रहा था तो मेरे पास आत्महत्या के सिवाय कोई रास्ता नहीं दिख रहा था।
उसे सबसे ज्यादा तकलीफ़ इस बात की थी कि माँ और भाईयों ने पिता के मौत की खबर छह महीने बाद तब दी जब उनके स्कूल से नोटिस आया कि जल्द ही उनकी जगह परिवार के किसी सदस्य को लेनी होगी वरना किसी और की नियुक्ति कर दी जाएगी।
दीपा की आत्मा उन बातों को याद कर रो रही थी और वो यही सोच रही थी...
अपने जीवन का अंत अपने हाथों में लेना भी इतना आसान और संभव नहीं है। जितनी लंबी आपके हाथों की रेखा है और ईश्वर ने आपके लिए आयु तय की है तब तक आप मर कर भी मर नहीं सकते।
क्रमश:
आपको यह कहानी पसंद आ रही है यह जानकर खुशी हुई।
इस कहानी से जुड़े रहने के लिए मेरे प्रिय पाठकों का तहे दिल से शुक्रिया। आप इसी तरह कहानी से जुड़े रहिए और अपनी समीक्षा के जरिए बताते रहिए कि आपको कहानी कैसी लग रही है।
कविता झा'काव्या कवि'
#लेखनी धारावाहिक प्रतियोगिता
शताक्षी शर्मा
25-Sep-2022 11:20 AM
Very nice
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Chetna swrnkar
25-Sep-2022 10:49 AM
बेहतरीन रचना
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Kaushalya Rani
25-Sep-2022 01:05 AM
Very interesting part
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